बाई के आया पाहुना रे दिल्ली शहर का ।
कवर के आया पाहुना रे हतनापुर का ॥
तो हूँ बैजानू… सरत माय सुरत कर ।
पन सवरू रे घर वो सो ज्ञाने बताए ॥
बाई के आया पाहुना….
तो हूँ बैजानू… पहलो तो नवतो धरती माय को ।
दिजो री अबला पेट भरया दुनिया का ॥
बाई के आया पाहुना….
तो हूँ बैजानू… दूजो तो नवतो तो सूरज भान को ।
दिजो री अबला पुतर खिलाया कासम का ॥
बाई के आया पाहुना….
तो हूँ बैजानू… तीजो तो नवतो तीनू भाई लोक ।
दिजो री अबला पुतर खिलाया बसुराज का ॥
बाई के आया पाहुना….
तो हूँ बैजानू… चौथा तो नवतो रे चारु कुट ना ।
दिजो री अबला कुट भरया री अबला न का ॥
बाई के आया पाहुना….
तो हूँ बैजानू… पाचो तो नवतो रे पांचु पांडू ।
दिजो री अबला पुतर खिलाया कुंता न का ॥
बाई के आया पाहुना….
तो हूँ बैजानू… छट्टो तो नवतो रे छावु पीर ना ।
दिजो री अबला पुतर खिलाया बीबी न का ॥
बाई के आया पाहुना….
तो हूँ बैजानू… सातो तो नवतो सातु समिंदर ।
दिजो री अबला जल पुराया दुनिया न का ॥
बाई के आया पाहुना….
तो हूँ बैजानू… आठो तो नवतो रे हनुमान को ।
दिजो री अबला पुतर खिलाया अंजना न का ॥
बाई के आया पाहुना….
तो हूँ बैजानू… नवो तो नवतो रे नव कुळी नाग ना ।
दिजो री अबला पुतर खिलाया बासंग का ॥
बाई के आया पाहुना….
तो हूँ बैजानू… दसो तो नवतो दसु अवतार ।
दिजो री अबला पुतर खिलाया दशरथ का ॥
बाई के आया पाहुना….
बाई के आया पाहुना रे दिल्ली शहर का by Ak | Sacred das | Bhajan Aarti